Nayan | WritersCafe.org

Saturday, December 12, 2020

flowing ink


ink flows over an empty paper
tracing lines of its own,
paths that are known and old,
to its own fold shall it be sold?
no! the flowing force never be lone!
the painter does mysteries unfold,
when nudges she into shapes untold,
and enters into the lively zone,
of beauty, but with spots bold,
the heart forever inked to behold!

- nayan
Sat, 12 December 2020
Patna

Friday, December 11, 2020

বারবার কেন... ? Bar bar keno... ?


কি করে চিনবো তোকে
আমি নিজেরেই যে চিনি না!

দেবতার গ্রাসে,
মানুষের দীর্ঘশ্বাসে,
জগতের রুদ্ধশ্বাসে,
আমি বসে রই একা!

এই অখিল ভুবনে
এসেছিলাম তো একা!
তবু কেন সে আমাকে
মায়ের মমতায়, 
পিতার ভালোবাসায়,
সখার সাধে 
জড়িয়ে রাখে?

স্তব্ধ হিয়ার মাঝে,
চোখের পাতার ভীতরে,
আলোর অসংখ্য বুদবুদ
কেন ঘুমোতে দেয় না?

কেন এই পটে বারবার
একই ছবি ফুটে আসে?
একমাত্র শিল্পীর 
আঙ্গুলের ইশারায়,
কেন বারবার আলো 
নেভে আর জ্বলে?

যে দিকেই চাই,
দিকভ্রান্ত হয়ে যাই,
এর কোন মানে হয় না!
তবু কেন ভালো লাগে?

তাই কি বারবার
আলো জ্বলে ওঠে,
আর এই পর্দায় ভেসে ওঠে
নানা রঙের ছায়াছবিগুলো?

হাততালি পড়ে,
কান্নার অশ্রু ঝরে,
প্রেমে দুনয়ন ভাসে,
হিংসায় পরান জ্বলে!
তবু কেন মন ভরে যায় না?

কাতর কন্ঠে
আনন্দের সুর কি মানায়?
আশার চক্ষে
আশঙ্কার আগুন কি দেখায়?
এই উল্টোপাল্টা ছড়া বেঁধে
বেশ চলেছে গল্পটা!

উদ্দাম ঢেউয়ের জলে
হাবুডুবু খাওয়া পিঁপড়ের কাছে
সাগরের কূল খুঁজে পাওয়ার
নিছক কল্পনা যতখানি হাস্যকর,
তার চেয়ে অনেক বেশি
ওর দম বন্ধ করা মরম-বেদনা -
যে সে কিছুই জানে না!

-- 
১০ই ডিসেম্বর ২০২০
রাত ১০.৩০
পাটনা



Tuesday, December 8, 2020

the fall and the rise


The descent of the heavenly creeper,
was it it's longing to touch the motherly soil,
or the selfish pull of her gravitational embrace?
And the ascent of the grounded one,
pushing itself away from the restricting entangle,
aspiring to the limitlessness of the infinite blue!
The fall and the rise
of the risen and the fallen,
symbolising the longings
of an eternal union,
of the sky and the earth,
makes such a beauty
on the canvas of creation!

- nayan
Tue, 8th Dec 2020
Patna

Wednesday, November 25, 2020

बेशक्ल Beshakl (Faceless)

जहां भी गई मैं
लोगों की दुआओं ने मुझे
मेरी सूरत से ही दूर कर दिया।
शक्ल देखी है अपनी?
चले आते हैं कहां कहां से!
लोगों का मेरे दागों के प्रति लगाव ने
मुझे मेरी सूरत से ही भुला दिया,
मुझे तो बदसूरती ने बेशक्ल बना दिया!

...

लेकिन तुम!
जो अपनी खूबसूरती की तस्वीर
एक अमानत की तरह लिए फिरती थी,
तुम्हें क्या हुआ?
आज क्यूं अफसोसों का छाप
दिल पे लिए बैठी हो?
सुन्दर सूरत की फ्रेम में फंस कर 
बस रह गई क्या?

-- नयन
कोयंबटूर
२०१९

(चित्र यहां से गृहित है - https://www.pikrepo.com/ftkdp/silhouette-photo-of-long-haired-person)

परिवर्तन का खेल Parivartan ka khel


यह दुनिया भी उतनी पत्थर नहीं,
जितनी शायद दिखती है,
मन की आंखों से देखने पर
यह भी बदल सकती है।

समय बदल रहा है,
लोग बदल रहे हैं,
परिस्थितियां बदल रहीं हैं,
भला ही है, परिवर्तन हो रहा है।

यही तो प्रमाण है
कि यहां सबकुछ उतना हार मांस का नहीं!
यह दोष हमारे नज़र का ही तो है
कि हम सारे गुणों को ठोस मान बैठे!

समय के इस दरिया में
बुलबुले उभर कर आते हैं,
पर असीम करुणा की गोद में
क्षणिक सुख के बाद, समा भी तो जाते हैं।

कोई यहां कुछ बांध कर लाया नहीं,
कोई यहां साकार तो आया नहीं,
यूं ही लेन देन की रीत में
रंगों का खेल चला जा रहा है।

जो कल था, वह आज कहां?
आज का, कल रहेगा ही - यह भी अटल नहीं!
तो जिसके लिए जनम मरण की कसमें खाते हो,
कल बदल गया तो किसको मुंह दिखाओगे?

समय के चक्के पर घिसे जा रहे हो,
यही सोच कि अडिग हो, अच्छे हो, सही हो, सच्चे हो!
जिस दिन इस कफ़न का भार उतार दिया,
उसी वक्त आज़ाद हो जाओगे!

तजुर्बे के आगे उसूलों की क्या औकात!
पर सही गलत के तराज़ू में हमने
जीवन का जीना हराम कर दिया है!
इसीलिए तो खूब ही कहा है किसी ने - 

इस धरती पर आया जो है,
ढूंढा उसने उसको कब है!
बेहती गंगा को भुलाकर,
चुल्लू में खोजा कल है!

-- नयन
बुधवार, २५ नवंबर २०२०,
सुबह ४ बजे,
पटना

(चित्र यहां से गृहित है - https://commons.m.wikimedia.org/wiki/File:Waterfall_in_plitvicka_romanceor_5.jpg)

Wednesday, October 21, 2020

आखिरी चाहत Aakhiri Chahat (Last Wish)


ऐ खुदा
यह मुझको बता,
क्या किया था मैंने
कि यह वरदान
तूने मुझको दिया,
कि यहां आ गए हम,
कि यहां आ गए हम!

अब जियें या मरें,
है बस यही अरमान,
कि जियूं तो उसके लिए,
मरूं तो उसके लिए,
ये जान न्योछावर हो
बस अब उसी के लिए!
जिसने सांस लेना सिखलाया,
हर एक सांस अब 
बस उसी के लिए!

संसार की दौलत से परे
जिसने रूह का ख़ज़ाना खुलवाया,
बेबसी और तानों से निकाल कर
जिसने आज़ादी का सपना दिखलाया,
बंद आंखों में भी जिसने
ख़ुदा का नूर छलकाया,
अब और ये न खता हो,
कि उसे छोड़ जाऊं मैं!
कि उसे छोड़ कभी न जाऊं मैं!

जिसने खुद के पहचान से परे
खुद की कीमत समझाया,
जिसने अपनापन के रिश्तों से बढ़कर
खुद में जो ख़ुदा है,
उससे नाता जुड़वाया,
जिसने अपनी ही गहराइयों में छिपे
खुशी और रौशनी का रास्ता दिखलाया,
अब यहां यह धड़कता जीवन भी
बस उसी का नज़राना!

मेरे मालिक, मेरे मौला,
तूने इसको भी खींच लिया,
इस बेवकूफ अभागे को
भी तूने तिलिस्म दिखा दिया!
अब बस बाकी एक और चाहत है,
कि मुझे तू अपने में समा लेना,
फिर वापस जाने न देना,
बस अपने में समा लेना!

-- नयन
बुधवार, २१ अक्टूबर २०२०
कोयंबतूर


Tuesday, October 13, 2020

facing my demons



for ages I have kept running
away from the devils
that reside inside
my dark interiors
of camouflaged compulsions,

for ages I have found
safe gardens where
light does not reach the bottom
to show the shit, where
no one could ever peep
and see what lies hidden,

for ages I have been
troubled inside
with turbulence and nastiness,
but I have been able to
divert attention and kept going on,

for ages I have sought
pleasure in seclusion,
time and again
allowing the cycles to repeat,
basking in the comfort,
assuming no one knows,

for ages I have seen
my legs shaking
when it needed steadiness,
for the foundations
were continuously bitten by
my inner termites,

for ages my being
is being sucked
by a black hole -
self-created and self-nurtured,
and all I did was feeling guilty
after each recurrence,

but now I have decided
to pull down all walls,
cast away all shields,
and stand there
naked under the Sun!

let the fire of a colossal star,
bigger than a thousand black holes,
burn my inner impurities,
light up the eternal pyre, and
chastity me of my hesitation and guilt!

no more now
shall I run away,
no more now
shall I hide,
no more now
shall I fear,
I am now open 
to facing all my demons!

-- nayan
Tue, 13th Oct 2020
Coimbatore

Saturday, October 10, 2020

wondering when wisdom shall prevail


what can you do?
there is nothing to be done.
just you can be...

in the sunlight you look for the moon,
in the night sky you don't see the firefly,
and such a huge mountain hides from your eyes...

what is seen, and what is unseen,
what is the line that separates them?
or is it just the inability to see...

water will anyways flow down the hill,
what else needed to have it's presence felt?
and still we stand thirsty...

cursing the creation when things go wrong,
and bursting into partying when we get what we want,
ups and downs continues to torment...

flower blossoms nourishing from the earth,
butterfly dances, tasting it's nectar,
and to the same earth they merge back...

we come, then act our way on the stage,
with sorrow or joy, knowingly or otherwise,
and then we go, when the curtain falls...

this dance, this melody, this poetry of life,
or a songless, unrhythmic prose of boredom and strife,
this choice, this election vote remains uncasted...

the urge to act, the impulse to react, and a brainless race,
have come with consequences gift-wrapped,
wondering when wisdom shall prevail...

-- nayan
Sat, 10th Oct 2020
Coimbatore








Thursday, September 24, 2020

दो नन्ही सी जान Do Nanhi Si Jaan

दो नन्ही सी जान!
कहां है, खुद वो कौन है,
क्यूं ही आयी, लाया भी कौन है,
इन सबसे अनजान!
पता नहीं क्यूं
छोड़ कर चली गई थी
उन्हें उनकी मां!
दो नन्ही सी जान।

एक नन्ही चीरी
चली गई छोड़
बहुत ही जल्द,
एक रात भी
न रुक पाई थी वह!
बेजाबान, आंखें मूंद
ही चली गई छोड़!

उसकी हमउम्र जुड़वा
रह गई थी अकेली,
मुंह फाड़, अंधेरे में,
अपनी नाज़ुक जीवन का
सहारा ढूंढ़ रही थी,
मां की ममता की 
आस में थी वह!

बेबस, नासमझ, हमने
नन्ही सी चीरी को
दिया एक बनाकर घोंसला,
पर दुविधा में जो भी थोड़ा
दिया उसे खाने को,
वो उसे ले न सकी!

कमजोर शरीर में
नाज़ुक सी सांस
शांत हुई जा रही थी,
धड़कनें शिथिल पड़ रहीं थीं,
चहचहाना बंद हो गया था,
खाने की हिम्मत न थी अब,
वह बहुत चुप हो गई थी!

सुबह के सूरज की
पहली लाली ने
दिल पे पत्थर रख दिया!
आंखों से टपकती आसुओं 
को पता चल चुका था,
मां के बिना नया जीवन
नहीं पनप सकता!
नन्ही सी जान की
एक दिन की जिन्दगी
हमसे अलविदा कह चुका था!

-- नयन
बृहस्पतिवार, २४ सितंबर २०२०
कोयंबतूर

(नितेश जी के मुख से सुनी ये एक सत्य घटना पे लिखी)

Sunday, September 13, 2020

आज़ाद परिंदा Aazaad Parinda



जिंदगी में कभी तो भैया
सच बोल दे, झूठा ही सही।
मौत आने के आगे कभी तो तू
प्यार उड़ेल दे, झूठा ही सही।

सच की गठरी तूने ली तो सही,
पर छेद थे कितने, देखा नहीं!
खाने को खोला तो पाया खाली,
बेहोश नयनों को दिखे न लाली!

दिखावे की हंसी, दिखावे का प्यार,
झेल न पावे समय की मार!
कभी तो भैया लगा अकल,
और मुखौटा उतार के चल!

बहुत बोझा डाला रे सर पे,
काम न आवे ये बेवक्त का ज्ञान!
काहे न देखे तू रे खुद को,
कैसे खड़ी है झूठी पहचान!

जिया नहीं जी भर कर जब तू,
किस बात का है ये काला धन?
समय चूक पछताने से पहले,
दे दे "खुल जा सिम सिम" की जबान!

जो है जमा, उसे पिघल जाने दे,
जो है अटका, निकल जाने दे,
खुली हवा में सांस लेकर,
आज़ाद परिंदा तू भी बन जा!

-- नयन
सोमवार, ७ सितंबर, २०२०
कोयंबतूर

Wednesday, August 19, 2020

being a mother: the quality of selfless giving


but still 
the quality of the sun 
will be to burn 
and emit light and warmth to all,
still the flower 
will spread its fragrance to one and all,
still the butterfly 
will dance in the air flying and flapping its wings,
unmindful of 
who or who not are watching,
who or who not are receiving and benefitting,
and who or who not are cursing in return...
but still the being who is blissful within,
everything she does is hers - 
that's just how she is,
for she doesn't know how else to be,
but just to give it all - this quality 
is only what she has,
for she feels for everyone and everything,
choiceless, without discretion - howsoever it may seem,
but she lives only in the joy of giving,
just the way a mother lives for her child,
and the mother earth opens herself to all life,
let she also be
what she truly is,
what she is best,
that when she bares her breast 
to feed and nourish her children,
let her not be threatened,
abused or isolated,
but be protected and treated with respect,
so that she can be herself!


-- nayan
6pm, Saturday, 15th August 2020
Coimbatore

Saturday, August 15, 2020

canvas of life


let your passion paint itself 
on the canvas of compassion,
for passion can be yours, 
but compassion is of all,
for in letting your passion paint itself, 
you will not own it, 
neither will it own you,
for both, it and you, to remember 
that it is just a paint 
on the universal canvas of compassion,
but without it, 
there can also be no painting, 
just a canvas, empty and clean!

-- nayan
August, 2020
Coimbatore

(creative designed by Suruchi)

togetherness

it just went so quick,
our time today,
that we together spent,
but relished we both,
every moment of it,
and we failed to notice
how fast it flew...

but just realised
that today it was of joy, 
but tomorrow it can be
one of grief or pain or angry fight
or may be that of 
blissfullness and ecstacy...

so, let our time
that we spend
in each other's company
be remembered for our 
unselfish togetherness,
for true love is unbounded,
true compassion limitless...

let not moments of
unexpectations
puncture our joy within
with pellets from the outside,
but our togetherness
be our strength and patience
that we will need 
to walk this path 
to our ultimate union!

-- nayan
Sun, 9th Aug 2020
9.42pm
Coimbatore

Thursday, August 13, 2020

हर दिन थोड़े ही न एक सा रहता है Har Din Thode Hi Na Ek Sa Rehta Hai

आज मन ठीक नहीं है न? 
पर कोई नहीं, 
हर दिन थोड़े ही न
एक सा रहता है।

कभी किसी अपने को लेकर
दुखी होता है,
तो कभी किसी की बातों में
उलझ जाता है,
पर कोई नहीं, 
हर दिन थोड़े ही न
एक सा रहता है।

किसी दिन उमीदों की
असफलताओं पे रोता है,
या कभी दिल की चोट पर
बेबस हो जाता है,
पर कोई नहीं, 
हर दिन थोड़े ही न
एक सा रहता है।

क्योंकि कभी तो
ये भी उछलता है,
उड़ता है,
हंसता है,
खिलखिलाता है,
है कि नहीं?

जब किसी की
मीठी सी मुस्कान
दिल को छू जाती है,
जब किसी अपने की
मधुर याद सबकुछ
भुला देती है,
जब अनजाने बेउम्मीद किसी
परवाह से धूल जाती है
सदियों की कालिख,
जब जरूरत के वक्त
कोई प्यार से साथ दे देता है,
और जब कोशिशों को
कामयाब होते देखती हैं आंखें,

तब इंसानियत पे 
भरोसे के साथ साथ,
अपने आप पे भी हौसला
बुलंद हो जाता है,
तब इस दुनिया में 
रंग दिखते हैं,
आशा नज़र आती है,
और दुख दर्द के समंदर को
पार करने की हिम्मत
फिर से दिल में 
सराबोर हो जाती है।

तो कोई नहीं,
आज नहीं है, 
तो कल होगा,
क्योंकि -
हर दिन थोड़े ही न
एक सा रहता है।

-- नयन
बृहस्पतिवार, १३ अगस्त, २०२०
कोयंबतूर

Wednesday, May 27, 2020

sun actually never sets

The leaks from the garbage
of the mind, unconsciously
without my notice they fly off,
my slightest reaction that
leaves me scarred forever,
seeking healing from winds
of time, that I do not let!

People blessed with emotion -
the intensity of sweetness or grief,
the bonds that make us break,
that make us come strong,
what matters to whom?
the priceless tears that flow
for loved ones,
or, one and all,
what do they tell?

What baffles us, breaks us,
what are it's dimensions?
do we see through the small
keyhole or through the fullscape
of life, beyond the horizon?

The darkness that eats us, 
it would not have,
if only we could see,
the sun actually never sets!

nayan
25th July 2019

Tuesday, May 26, 2020

जहां दिखे रास्ता - Jahan dikhe raasta

जहां दिखे रास्ता,
जहां आंखें ले चलें,
जहां है न कहीं जाना...

जिस ओर बहे हवा,
हो दुआयों का रास्ता,
(जहां) मंजिल का न हो सपना...

बस यूंही सैर करें,
जहां पल में हो जिंदगी,
जहां (कल की) सोंच न सताए...

चलें, उस आलम में बसें,
जहां अंधेरा न डराए,
जहां रंग न लुभाए...

जहां दर्द हो भी तो तकलीफ न हो,
ऐसे साथी का साथ मिले,
ऐसे होश की खिड़की खुले...

कौन सी है ऐसी जगह?
ये है आखिर कहां?
कैसे है वहां जाना?

जहां दिखे रास्ता,
जहां आंखें ले चलें,
जहां है न कहीं जाना...

कोई ऐसी ये नहीं,
जहां चलकर है जाना,
बस (इक पल) है ठहरना...

नयन
२६ मई २०२०
शाम के ३.३४ बजे
कोएंबतुर 

Saturday, May 9, 2020

life flows freely...

if you walk upon this earth,
walk with care,
gently,
that her heartbeats
every moment
we can feel!

through the mother earth's veins
the blood flows too -
that life giving nectar,
which nourishes all life,
animals, birds, plants,
and of course us, humans!

mountains, clouds, springs and rivers,
the sky, the ocean, and the rays of the sun,
in what all forms
does she meet us,
our mother nature!

the worm that crawls, and the butterfly that flies,
the fish that swims, and the deer that runs,
and one who can do all these, the humans,
amongst them -
is someone bigger, or smaller?
how to accept this stupid sense,
when life sprouts abundantly
even in the trees that can't move?

with time, 
does change the colour and the shape, 
the condition of conscious, unconscious, 
moving and unmoving,
but what is seen at this moment,
cements itself such, that
when it breaks, it weeps
in tears of blood!

but life, is after all life!
flowing freely from
the veins of the mother earth
into our veins,
eternally, non-stop!

-- Nayan,
9.30pm,
Saturday, 9th May 2020
Coimbatore

Friday, May 8, 2020

बहता जीवन! Behta Jeevan

इस धरती पर चलें
तो बड़ी ध्यान से चलें,
कोमलता से चलें,
ताकि धरती मां की
धड़कनों का अहसास
हो हर पल, हमें!

मिट्टी मां की रगों में
भी तो बहता है खून,
वह जीवन देती अमृत,
जिससे खिल उठती हैं जिंदगियां,
पेड़- पौधें, पशु - पक्षी
और हम, इंसान!

पहाड़, बादल, झरने व नदियां,
आसमान, समंदर व सूरज की किरणें,
किन - किन रूपों में 
साथ देती प्रकृति मैया से 
मुलाकात होती है हमारी!

रेंगते कीट और उड़ती तितली, 
तैरती मछली और दौड़ती हिरण में,
और इन सभी को कर पाने वाले इंसानों में,
क्या कोई बड़ा, क्या कोई छोटा है?
इन बेवकूफियों को माने कैसे?
अचल पेड़ों में भी तो पनपता है जीवन!

चलते समय के साथ बदलता है रूप - रंग,
जड़ - चेतन, चल - अचल की स्थिति,
पर इस क्षण जो दिखता है, जम जाता है ऐसे,
कि जब टूटता है तो खून के आसुं रुलाता है!
पर जीवन तो बहता चला है,
धरती मां की रगों से हमारी रगों में,
हमेशा, बिना रुके!

- नयन
बृहस्पतिवार, 7 मई, २०२०
कोयंबटूर

Tuesday, January 14, 2020

ধ্যান রে, তুই কোথায়? Dhyan re, tui kothae? Oh meditation, where art thou?

(image credits: https://500px.com/photo/137895465 )

যতক্ষণ মানুষের শরীরে শক্তি থাকে,
সে ভাবে, এই করবো, ওই করবো,
চারিদিকে কেবল ছুটেই বেড়াতে থাকে।
যখন শরীরের শক্তি ক্ষীণ হয়ে যায়,
সে থিতু হয়, চুপ করে বসে,
এই অবস্থায় সে অনায়াসেই
ধ্যানের জগতে প্রবেশ করতে পারে।
কিন্তু তাও যে সে পারে না -
তার মন তখন শুধু আপসোস করে যায়,
যদি সামর্থ্য থাকতো, এই করতাম, ওই করতাম।
কিন্তু ধ্যানমগ্ন হওয়া কিছুর বিপক্ষে নয়,
কোনও কাজেরই বিরুদ্ধে নয়,
যে একথাটি বুঝতে পারে,
সে সহজেই ধ্যানমগ্ন হয়ে যায়।


-- নয়ন
১৪ জানুয়ারি ২০২০, সকাল ৮টা
তৃবেন্দ্রম

Thursday, January 9, 2020

explosion within

this feeling within
that knew no bounds,
where there was no 'I',
where there was not even
the realisation of the 
feeling of the moment,
but only the relishing
of the feel, without even knowing...

was it the people -
the faces and the forms,
the colours and the shades?
was it the food -
the variety of the tastes?
was it the get-together -
the talking, the laughter,
the sharing, and the fun?

familiarity, or first time encounter,
closeness, or just acquantance,
the time spent together on that table,
in that group this evening -
what was so special, that 
did not need even recognition,
but that pure, that unadulterated...
what was this sweetness i felt today?

of all colours, in the meanwhile,
of all the faces, of all the smiles,
was it your face and your smile?
how can i say it was, because
i was not conscious of this 
exclusiveness, but lost i was
in the explosion within,
enlarging, engulfing everything...

later, sitting in my own space, i see
what has grasped me,
from head to toe, completely,
what has left me drenched,
dripping in this enchantment.
ah! what is this mad flood
that has blown me inside out,
into this feel, infinite!

what might have begun
with a single or a limited few
feelings of proximity, has leapt into 
the limitless longing of embracing all.
i know i unknowingly 
admired you today, but this 
has now turned unstoppable
wanting to go to all!

what is this crazy rush
that seems physical, but not as well,
that is felt for few, but not just, as well,
these tearful eyes, what do they say?
such blissed out is my inside, that
it feels to me, the first time, that
to have this with everyone, everything,
is possible, this love affair!


-- nayan
2 am, thu 9th jan 2020
coimbatore
(still dripping in the feeling from last evening's get-together, to celebrate an occasion)