Nayan | WritersCafe.org

Friday, June 30, 2023

आज़ादी की प्रतीक्षा - The Wait for Freedom


प्रतीक्षा यही आज़ाद होने का ही है,
वरना जाना तो सबको है एकदिन;
किसको किसमें कितना है होड़ –
यही कतार की शकल तय करता है।

ख्वाइशें तो मन में सबकी है,
कोई सक्षम है छुपाने में, कोई नहीं;
नकाब की आड़ में छिपे चेहरे,
बड़े हमशक्ल नज़र आते हैं।

सबको अपनी धुन में नचाता है कौन –
तक़दीर की लकीरें, या हालात के नुमाइंदे?
यह कैसा उधेड़बुन, कैसी बेसुध है बुद्धि?
जागेगा कैसे अंदरमहल का राजा?

हर वक्त कुछ पाने की ललक, हर वक्त
कुछ खोने के डर से अलग है क्या?
इतनी क्यों बेचैन हैं यह मासूम चितवन –
कि सांस लेने से भी जी घबराता है?

जिंदगी से ऊबकर जाना चाहो,
या दुनिया के कायदों से तंग हो,
या ख्वाइशों के पन्ने पूरे होने पर,
पर जाने को जलन है क्या सच में?

पहले आप या पहले मैं –
फासला बस इतना सा ही है,
कि किसका नंबर कब आएगा;
वरना कतार में तो सब खड़े हैं।

तो कैसे निकले पिंजरे से चिड़ी –
बिना बिके सौदागर के तराजु पे?
क्या पाए, कहां जाए, या क्या करे –
सोच, रवैया, या एक बड़ा सा दिल?

– नयन
शुक्र, १० जून, २०२३
रात १० बजे