Nayan | WritersCafe.org

Thursday, September 24, 2020

दो नन्ही सी जान Do Nanhi Si Jaan

दो नन्ही सी जान!
कहां है, खुद वो कौन है,
क्यूं ही आयी, लाया भी कौन है,
इन सबसे अनजान!
पता नहीं क्यूं
छोड़ कर चली गई थी
उन्हें उनकी मां!
दो नन्ही सी जान।

एक नन्ही चीरी
चली गई छोड़
बहुत ही जल्द,
एक रात भी
न रुक पाई थी वह!
बेजाबान, आंखें मूंद
ही चली गई छोड़!

उसकी हमउम्र जुड़वा
रह गई थी अकेली,
मुंह फाड़, अंधेरे में,
अपनी नाज़ुक जीवन का
सहारा ढूंढ़ रही थी,
मां की ममता की 
आस में थी वह!

बेबस, नासमझ, हमने
नन्ही सी चीरी को
दिया एक बनाकर घोंसला,
पर दुविधा में जो भी थोड़ा
दिया उसे खाने को,
वो उसे ले न सकी!

कमजोर शरीर में
नाज़ुक सी सांस
शांत हुई जा रही थी,
धड़कनें शिथिल पड़ रहीं थीं,
चहचहाना बंद हो गया था,
खाने की हिम्मत न थी अब,
वह बहुत चुप हो गई थी!

सुबह के सूरज की
पहली लाली ने
दिल पे पत्थर रख दिया!
आंखों से टपकती आसुओं 
को पता चल चुका था,
मां के बिना नया जीवन
नहीं पनप सकता!
नन्ही सी जान की
एक दिन की जिन्दगी
हमसे अलविदा कह चुका था!

-- नयन
बृहस्पतिवार, २४ सितंबर २०२०
कोयंबतूर

(नितेश जी के मुख से सुनी ये एक सत्य घटना पे लिखी)

Sunday, September 13, 2020

आज़ाद परिंदा Aazaad Parinda



जिंदगी में कभी तो भैया
सच बोल दे, झूठा ही सही।
मौत आने के आगे कभी तो तू
प्यार उड़ेल दे, झूठा ही सही।

सच की गठरी तूने ली तो सही,
पर छेद थे कितने, देखा नहीं!
खाने को खोला तो पाया खाली,
बेहोश नयनों को दिखे न लाली!

दिखावे की हंसी, दिखावे का प्यार,
झेल न पावे समय की मार!
कभी तो भैया लगा अकल,
और मुखौटा उतार के चल!

बहुत बोझा डाला रे सर पे,
काम न आवे ये बेवक्त का ज्ञान!
काहे न देखे तू रे खुद को,
कैसे खड़ी है झूठी पहचान!

जिया नहीं जी भर कर जब तू,
किस बात का है ये काला धन?
समय चूक पछताने से पहले,
दे दे "खुल जा सिम सिम" की जबान!

जो है जमा, उसे पिघल जाने दे,
जो है अटका, निकल जाने दे,
खुली हवा में सांस लेकर,
आज़ाद परिंदा तू भी बन जा!

-- नयन
सोमवार, ७ सितंबर, २०२०
कोयंबतूर