Nayan | WritersCafe.org

Sunday, September 13, 2020

आज़ाद परिंदा Aazaad Parinda



जिंदगी में कभी तो भैया
सच बोल दे, झूठा ही सही।
मौत आने के आगे कभी तो तू
प्यार उड़ेल दे, झूठा ही सही।

सच की गठरी तूने ली तो सही,
पर छेद थे कितने, देखा नहीं!
खाने को खोला तो पाया खाली,
बेहोश नयनों को दिखे न लाली!

दिखावे की हंसी, दिखावे का प्यार,
झेल न पावे समय की मार!
कभी तो भैया लगा अकल,
और मुखौटा उतार के चल!

बहुत बोझा डाला रे सर पे,
काम न आवे ये बेवक्त का ज्ञान!
काहे न देखे तू रे खुद को,
कैसे खड़ी है झूठी पहचान!

जिया नहीं जी भर कर जब तू,
किस बात का है ये काला धन?
समय चूक पछताने से पहले,
दे दे "खुल जा सिम सिम" की जबान!

जो है जमा, उसे पिघल जाने दे,
जो है अटका, निकल जाने दे,
खुली हवा में सांस लेकर,
आज़ाद परिंदा तू भी बन जा!

-- नयन
सोमवार, ७ सितंबर, २०२०
कोयंबतूर

No comments:

Post a Comment