जहां दिखे रास्ता,
जहां आंखें ले चलें,
जहां है न कहीं जाना...
जिस ओर बहे हवा,
हो दुआयों का रास्ता,
(जहां) मंजिल का न हो सपना...
बस यूंही सैर करें,
जहां पल में हो जिंदगी,
जहां (कल की) सोंच न सताए...
चलें, उस आलम में बसें,
जहां अंधेरा न डराए,
जहां रंग न लुभाए...
जहां दर्द हो भी तो तकलीफ न हो,
ऐसे साथी का साथ मिले,
ऐसे होश की खिड़की खुले...
कौन सी है ऐसी जगह?
ये है आखिर कहां?
कैसे है वहां जाना?
जहां दिखे रास्ता,
जहां आंखें ले चलें,
जहां है न कहीं जाना...
कोई ऐसी ये नहीं,
जहां चलकर है जाना,
बस (इक पल) है ठहरना...
नयन
२६ मई २०२०
शाम के ३.३४ बजे
कोएंबतुर
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