अंतर्द्वंद
जहाँ लोग हँस रहें हों
भगवान!
वहाँ मुझे भी हँसने दो!
जहाँ लोग रो रहें हों
भगवान!
वहाँ मुझे भी रोने दो!
नाथ!
ऐसा न हो कि –
लोगों के खुशियों पर
मेरे कारण -
गम के बादल छा जाए!
गम के बादल छा जाए!
पिता!
ऐसा न हो कि –
रोते-बिलखते लोगों के बीच
मैं अप्रिय हँसियो से
खुशियाँ मनाता रहूँ!
खुशियाँ मनाता रहूँ!
जहाँ के लोग कभी
भूखे पेट सोए नहीं!
भूखे पेट सोए नहीं!
माँ!
मुझे भी वहाँ विलासिताओं का
आनंद उठाने दो!
आनंद उठाने दो!
जहाँ लोगों को दो वक्त की
रोटी नसीब नहीं!
रोटी नसीब नहीं!
ईश्वर!
वहाँ मैं भी भूख व प्यास को
जीवन-संगिनी समझुँ!
जीवन-संगिनी समझुँ!
जहाँ लोग प्यार में जीते,
प्यार में मरते हैं
प्यार में मरते हैं
भगवान!
वहाँ मैं भी अपने प्रेमी के
साथ
रास-लीला कर सकूँ!
रास-लीला कर सकूँ!
जहाँ नफरत और हिंसा में
फंसें हैं लोग!
फंसें हैं लोग!
प्रभु!
वहाँ मैं भी ...
ठहरो!
गौतम, नानक, हरिश्चंद्र सा
क्यों नहीं बन सकता हूँ मैं?
ढाल के विपरीत
क्यों नहीं चल सकता हूँ मैं?
क्यों नहीं चल सकता हूँ मैं?
रोते हुए
लोगों के दिलों
को
खुश करने की कोशिश
कब मना है?
दुःख के बदलों को चिर
आनंद की किरण लाने में
क्या गुनाह है?
हँसते हुए लोगों को
रोते लोगों की छवि दिखाना
कब अपराध है?
भोग-विलास में लिप्त प्राणियों को
भूख का आभास करना
क्या बाध* है?
खुश करने की कोशिश
कब मना है?
दुःख के बदलों को चिर
आनंद की किरण लाने में
क्या गुनाह है?
हँसते हुए लोगों को
रोते लोगों की छवि दिखाना
कब अपराध है?
भोग-विलास में लिप्त प्राणियों को
भूख का आभास करना
क्या बाध* है?
नफरत भरे
दिलों में
प्यार के बीज बोना
कब मना है?
पढ़ने वालों से है प्रश्न मेरा -
(आपका) क्या कहना है?
प्यार के बीज बोना
कब मना है?
पढ़ने वालों से है प्रश्न मेरा -
(आपका) क्या कहना है?
मैं कवि नहीं!
बस दो टुकड़ों में बंटे हुए दिल में,
निरंतर चल रहा अंतर्द्वंद,
जो कि एक बहुत बड़ा प्रश्न-चिन्ह
बनकर प्रकट हुआ है -
उसी से मुक्ति
चाहता हूँ मैं!
* बाध = 'बाध्य' का अपभ्रंश
नयन
14th
Jan 2006
Chennai,
India
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