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Thursday, March 7, 2024

जाने अंजाने में – Knowingly and Unknowingly


जाने अंजाने में

बहुत से जीवन को

चोट पहुंचाता हूं,

इसीलिए माफ़ी मांगता हूं मैं।


जाने अंजाने में

बहुत से प्राणी

मेरे जीवन को समृद्ध करते हैं,

इसीलिए शीष झुकाता हूं मैं।


जाने अंजाने में

कितने ही क्षण

जीवन की सीख दे जाते हैं,

इसीलिए (ख़ुद को) धन्य मानता हूं मैं।


जाने अंजाने में

सुख, दुख, हंसना व

रोने के बीच डोलता रहता हूं,

इसीलिए मां तुझे याद करता हूं मैं।


जाने अंजाने में

सूखे तपते अधरों में प्यार–परवाह की

शीतल बूंदों की आस लिए बैठता हूं,

इसीलिए दुआ मांगता हूं मैं।


जाने अंजाने में

मटमैले पानी में साफ समझ की

धारा का स्पर्श पाता हूं,

इसीलिए नमन करता हूं मैं।


जाने अंजाने में

तेरे रहम के कलम की

लिखाई को पढ़ पाता हूं,

इसीलिए फिक्र को त्याग पाता हूं मैं।


जाने अंजाने में

अनंत अस्तित्व की झलक में

अपना स्थान समझ पाता हूं,

इसीलिए ख़ुद को अर्पण करता हूं मैं।


– नयन

दोपहर 11:40,

बृहस्पतिवार, 7 मार्च 2024

पटना

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