गति धीमी होगी,
स्मृति धूमिल होगी, और
पहचान मिटती जायेगी,
जो दुनिया रचाया था
हमने सर में, खुदबखुद
समय उसे भुला देगा।
अपने अस्तित्व का वर्चस्व -
कुछ करने का नशा, वह
घमंड की बुलंदी हमारी -
काल कमज़ोर कर देगा
भुजाओं की ताकत हमारी।
भ्रम के हौसलें टूटेंगे, और
वह मुट्ठी भी खुल जायेगी।
अगर आज अगणित
झोंकों के नोकझोंक से
इतनी सी अकल आ जाए -
कि सृष्टि के सजाए इस
सपने में, खुश होते
तड़पते हम नहीं, कोई और है,
करते हम नहीं, कोई और है...
तो अंत में जब मिटेगी माया,
और सच की सूरत दिखलेगा,
तब यह गिला, यह अफसोस,
कुछ खोने की मायूसी,
यह झांसा न रहेगा मन में,
अपने सच्चे स्वरूप की शकल को
हम दिल से मान पाएंगे।
-- नयन,
बृहस्पतिवार, 9 जून, 2022
पटना
(Image Courtesy: https://www.consciouslifestylemag.com/true-self-finding-your-spiritual )
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