Nayan | WritersCafe.org

Thursday, June 9, 2022

सच्चा स्वरूप - True Self


धीरे धीरे खेल की
गति धीमी होगी,
स्मृति धूमिल होगी, और
पहचान मिटती जायेगी,
जो दुनिया रचाया था
हमने सर में, खुदबखुद
समय उसे भुला देगा।

अपने अस्तित्व का वर्चस्व -
कुछ करने का नशा, वह
घमंड की बुलंदी हमारी -
काल कमज़ोर कर देगा
भुजाओं की ताकत हमारी।
भ्रम के हौसलें टूटेंगे, और
वह मुट्ठी भी खुल जायेगी।

अगर आज अगणित
झोंकों के नोकझोंक से
इतनी सी अकल आ जाए -
कि सृष्टि के सजाए इस
सपने में, खुश होते
तड़पते हम नहीं, कोई और है,
करते हम नहीं, कोई और है...

तो अंत में जब मिटेगी माया,
और सच की सूरत दिखलेगा,
तब यह गिला, यह अफसोस,
कुछ खोने की मायूसी,
यह झांसा न रहेगा मन में,
अपने सच्चे स्वरूप की शकल को
हम दिल से मान पाएंगे।

-- नयन,
बृहस्पतिवार, 9 जून, 2022
पटना

(Image Courtesy: https://www.consciouslifestylemag.com/true-self-finding-your-spiritual )

Wednesday, June 8, 2022

सृजन की लीला - Srijan ki Lila - Play of Creation


पुराने मरते शरीरों से
नया इंसान जनम लेगा।
पुरानी सृष्टि की कब्र पे ही
नया जंगल खड़ा होगा।

यह मौत नहीं है जीवन है,
नित्य सृजन की लीला है।

मुरझाए सूखे फूलों से
नई कलियां खिल आएंगी।
पेड़ों की पुरानी शाखों में ही
नई टहनियां निकलेंगी।

यह मौत नहीं है जीवन है,
नित्य सृजन की लीला है।

पुराने सड़ते पत्तों से
नये पौधें शकल लेंगे।
कीटों के अवशेषों से ही
नये केचुएं पैदा होंगे।

यह मौत नहीं है जीवन है,
नित्य सृजन की लीला है।

पुराने टूटे बस्तियों से
नया शहर खड़ा होगा।
पुराना किला जहां आज है,
वहां कल नया घर होगा।

यह मौत नहीं है जीवन है,
नित्य सृजन की लीला है।

पुराने भूले भटकों को
नई राह दिखलेगा।
हुए गुमराह जो आज हैं,
उन्हें भी अकल आयेगा।

यह मौत नहीं है जीवन है,
नित्य सृजन की लीला है।

पुराने दिल के अफसोसों में
नये उमंग आ जायेंगे।
तड़पते हुए बेजुबानों में भी
नये सुर धुन लेंगे।

यह मौत नहीं है जीवन है,
नित्य सृजन की लीला है।

पुराने दुखों की छाया से
नई खुशियां पनपेंगी।
पुराने बिलखते लोगों में ही
नई आशा भी आयेगी।

यह मौत नहीं है जीवन है,
नित्य सृजन की लीला है।

पुरानी मिटती मानवता से
नया मानव उभरेगा।
पुराना समाज जाने पर ही
नया नियम चालू होगा।

यह मौत नहीं है जीवन है,
नित्य सृजन की लीला है।

जहां जनम आज, कल मरण होगा,
खुशियां जहां, वहां कल दुख होगा,
विपरीत भी बिलकुल इसका सही है
बदलाव जीवन का ही ढंग है।

डर और मातम के अंधेर से
कल सुख-चैन की भी सुबह होगी।
और बंजर मरती मिट्टी में हम,
फूंक देंगे जीवन हरियाली।

यह मौत नहीं है जीवन है,
नित्य सृजन की लीला है।

-- नयन
बुधवार, 8 जून, 2022
पटना

(Image Courtesy: https://www.azocleantech.com/amp/article.aspx?ArticleID=1007 )

Tuesday, June 7, 2022

That which Is



That which is Perceiving
is That which Is -
this play of myriad
forms and faces,
colours and shapes,
smells and sounds.

This mysterious creation
that captures attention -
ours, towards herself
every single moment -
is also the place
for deeper recognition
of our true self -
That is Witnessing all this.

The experiences
of Pain and Suffering,
of Loss and Missing someone -
How different these are
from the experiences
of Pleasure and Happiness,
of Gain and Company!
And yet how so similar!

This experiencing of
That which Not Is -
as true, for ourselves - 
Is that that fuels
this colourful cinema.
But the essence is
not the experience
but the experiencer.

True Myths, and
Existant Dreams -
Not that need to discard -
but, the way we cling to
our bound beliefs -
Unwilling to let go
and explore beyond -
Is that that sheathes us
from the Infinite Oneness.

Of Opinions and Arguments,
Of Judgements and Reactions -
our lives have been jailed
in that that we believe
that we know to be true.
Yet, if we allow ourselves, then
At the Moment of Withdrawing
from all the actions and efforts,
in that lap of silence,
we touch a space
that is untouched -
That which Is -
Our true self!

-- nayan
Tuesday, 7th June, 2022
Patna

(Image Courtesy: https://fineartamerica.com/profiles/joseph-hennig )

Monday, June 6, 2022

আমার মৃত্যু - My Death


আমার মৃত্যু
হোক যেন 
একটি গাছের চরণতলে,
খোলা আকাশের নিচে,
মাটির বুকে,
কংক্রিটের উপর নয়।

যেখানে
হাওয়াকে আটকাতে
কৃত্রিম দেয়াল হবে না,
সত্যকে লুকোতে
মুখোশের আড়াল হবে না,
যেন সেই পবিত্রতায়
প্রাণ যায় আমার।

যেখানে
অহংকে খুশি করতে
ঢাক পেটানো হবে না,
কী করেছি, কী করিনি,
সেই নামের তকমা হবে না,
যেন সেই ভারহীনতায়
করি দেহত্যাগ।

যা এলে কেউ খেয়াল করে না,
উড়ে গেলেও কেউ টের পায় না,
তেমনই কাউকে না মাড়িয়ে,
কোনও আঁচড় না কেটে,
সেই পাখির
হালকা পালকের মতো,
যেন চলে যাই।

এক নাম না জানা
আগন্তুকের মতো,
বোঝা না বাড়িয়ে,
যাওয়ার সময় যেন
কোনও হ্যাঙাম ছাড়াই,
চুপি চুপি
নিই বিদায়।

আমাকে রেখো না মনে,
কেঁদোও না যেন
আমার কথা ভেবে,
নিজের জীবনকে সাজিও
তোমার নিজের মতো করে,
কেবল দেখো যেন
কেউ কষ্ট না পায়,
কোনও প্রাণ।

আমার আগুন ঠান্ডা হোক,
মাটিতে, বায়ুতে,
জলে ও আকাশে,
মিলে অভিন্ন হোক
আমার ভ্রমের ভিন্নতা,
বিচার ও ধারণার ঊর্ধ্বে,
বুদ্ধির কাঁটা ছুরির থেকে দূর,
নিয়ে চলো প্রভু।

হে বিধাতা,
আমায় মিলিয়ে দিও না
যেন আবার
তোমার নতুন সৃষ্টির সরঞ্জামে।
নিরঞ্জন করো ঠাকুর,
ঠাঁই দিও আমায়
তোমার নির্মল নিস্তব্ধতায়।

-- নয়ন
সোমবার, 6 জুন, 2022
পাটনা

(Image Courtesy: https://www.ted.com/playlists/776/wisdom_for_living_with_death_and_loss)