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Wednesday, August 13, 2025

जिसके पास तुम हो (Jiske Paas Tum Ho)


जिसके पास तुम हो,
उसके पास ऊपर वाले का रहम है,
एक सच्चे दिल की कसम है,
और बिन मांगे मन्नत की रसम है!

जिसके पास तुम हो,
उसके पास खुदा का नूर है,
अपनापन का मिठास भरपूर है,
क्योंकि गुरूर उससे कोसों दूर है!

जिसके पास तुम हो,
उसके पास साथ चलने की चाह अपार है,
औ' दोस्ती व हिम्मत का भंडार है,
इसलिए तो खूब सारा प्यार है!

जिसके पास तुम हो,
उसके पास खुशनसीबी की दुआ है,
जलते अंगारों में भी उसे मलहम ने छुआ है,
तभी तो सच्चे प्यार का इज़हार हुआ है!

जिसके पास तुम हो,
उसे कभी न मिटने वाला वरदान है,
अनछुआ, खांटी सोने की खान है,
बड़ा ही अनमोल उसका जहान है!

-- भास्कर घोष 
मंगल, 12 अगस्त 2025
रात 11:58 बजे, पटना

(ऊपर दिया गया चित्र perplexity ऐप द्वारा बनाई गई है)

Tuesday, August 12, 2025

সাদা-কালো Sada-Kalo (Black and White)


সাদা দৃষ্টি-পটে দেখা পাই,
একটি কুচকুচে কালো পাখি,
আর কালো প্রেক্ষাপটে ভাসি,
পায়রা সাদা মেলে আঁখি।

জোনাকিরা দেয় আলো,
দেখতে যদি লাগে ভালো,
তখন কি আর লাগে হাহাকার,
রাতের নিস্তব্ধ অন্ধকার?

রোদের ধাঁধানো আলোতে,
যখন মাথা ফেটে যায় ব্যথায়,
তখন কি চায় না শরীর,
একটু ছায়া, একটুকু অন্ধকার?

আর সাড়া শব্দ শূন্য পথে,
এক নিবিড় নিশীথ রাতে,
দুরুদুরু বুক চায় না কি তখন,
জোছনা, চাঁদের আলোর মতন?

মাটিতে তৃষ্ণার্ত অবসাদ
দেখেছে আকাশে আজ,
আসে যেন এক ডানা মেলা
স্বপ্নের ফেরিওয়ালা!

সাদা-কালো তাই মাখা,
জীবনেতে আছে গাঁথা,
মুচকি হাঁসি ও অশ্রু ফোঁটা,
সঙ্গে নিয়ে সিনেমা গোটা!

আবছা আলো, সঘন বাতাস,
মনের মিঠাস, হৃদয়ের হাহুতাশ,
রঙিন তাই চীনেমাটির কাপ-প্লেট,
নিয়ে চলেছে ছায়াছবির সেট!

-- ভাস্কর ঘোস
মঙ্গল, 12 আগস্ট 2025
দুপুর 1:30, পাটনা

Tuesday, August 5, 2025

फिर से छूना है वो मुकाम Phir Se Chhuna Hai Wo Mukam



फिर से छूना है वो मुकाम,
जिसे छोड़ आए थे हम।

जिसका हो पूरा का पूरा मयखाना,
क्या अफसोस उसे चंद गिलासों का?

जिसने समंदर में खाया हो गोता,
नहीं डरता कतई वह चुल्लुओं से!

और जो मर कर के लौटा हो वापस,
कैसे घबराए अब वह जिंदगी से?

काफ़ी देर ठहर चुका तंग स्टेशन पे,
अब फिर से चलने की मैंने ठानी है!

ठेस वाली जिंदगी अब खुद को कोसती है,
हरकतों की भी एक हद होती है!

अब बहुत हो चुका है सिरदर्द मेरा,
भनभनाते उल्लुओं से अब ऊपर उड़ना है!

गवारों की गलियों में
अब और नहीं मुझको रहना है!

पैसे से तालीम, और पद से कद मापने वालों को
उन्हीं की भाषा में जवाब-ए-जबरदस्त देना है!

ठीक है कि फिर लहरों से लड़ना होगा,
लेकिन समंदर तो अपना होगा!

सुकून और सेवा के लिए छोड़ा था आसमां,
लेकिन अब टूट चुका है भ्रम का समां!

चीलों व चमगादड़ों से इतना बड़ा है होना,
कि कभी सपने में भी ये छू न सके सीना!

सो, अब न चाहूं मैं नींद चैन की,
अब न करूं मैं बातें न्याय की।

जब तक लांघू न वो मुकाम,
जिसे छोड़ आए थे हम।

-- भास्कर घोष
मंगल, 5 अगस्त 2025
शाम 7:10 बजे, पटना

(फोटो का आभार: गूगल जेमिनी)

Saturday, August 2, 2025

ज़िंदगी के किस्से Jindagi Ke Kisse

लोग सोचते हैं 
कि यह चीज़ मेरी है,
मैं इसका मालिक हूं।

पर असल में,
यह एक खेल है
जो दिमाग में चलता है।

क्योंकि हम ख़ुद को
जिस चीज़ का मालिक मान बैठते हैं,
एक दिन वही हमारा मालिक बन जाता है।

कब तख्ता पलट की घड़ी आ जाती है,
हमें पता ही नहीं चलता,
देखते देखते हम गुलाम हो जाते हैं।

यह मालिक-गुलाम वाला खेल
एक सिनेमा की तरह है,
लगता है कि है, पर सच नहीं!

जैसे हम सिनेमा के दृश्यों पे 
हंसते हैं, रोते हैं, डर जाते हैं,
वैसे ही ज़िंदगी के किस्से होते हैं।

हम कहानियों पे भावुक हो सकते हैं,
पर उन्हें सच व ठोस मान बैठना
बेवकूफी नहीं तो और क्या है?

पैदाइश और परवरिश, 
दोनों में फर्क है -
एक हो चुका, दूसरा अभी भी जारी है।

इसीलिए तो यह एक मौका है -
खुद को जानने का,
सच को पहचानने का।

ख़ुद को खोजने का
सफ़र है यह जिंदगी,
काबू करने का कोई जंग नहीं!

-- भास्कर घोष
शनिवार, 2 अगस्त 2025
सुबह 9:55 बजे, पटना

(फोटो के लिए आभार: https://en.m.wikipedia.org/wiki/35_mm_movie_film)