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Thursday, August 7, 2014

Nirbhaya











(image source: http://simc-wire.com/16th-dec-delhi-gang-rape-case-long-awaited-final-verdict-arrives/)


क्यों कमज़ोर पड़े वो नारी ?
पीड़िता को दोष दे क्यों समाज है हारी ?
क्यों दर्द व दंश से रोए वो महिला ?
क्यों समाज स विक्षिदित कहलाए वो अबला ?

खुली हवा में तैरना सिर्फ मनसा न था,
यह उसकी स्वतंत्रता का अस्तित्व था।
जिसने अतिक्रमण किया उसके इस अधिकार का,
क्यों वह अदंडित रहे, और
क्यों वह अभागिन कहलाए ?
क्यों कहलाए वह ही पतिता ?

क्यों आततायी मुक्त रहे
प्रपंच के परिणाम से ?
क्यों औरत ही सिर्फ भुगते
अवहेलना और लांछन से ?
क्यों मरे वह ही शर्म से
जिसने न किया कोई दोष हो ?
क्यों पापी को अभय मुक्ति दे
समाज को उसपर न रोष हो ?

विक्षिप्त सोंच, बंद बुद्धि से ,
कहीं खो चुका समाज का संतुलन।
कौन रक्षे पथ आत्मविनाश से -
ले चेतना पथ पर संवेदनशील मन ?

दूरदर्शी हैं जो वीर-वीरांगनाएँ ,
बलिदान वहीं तो करते हैं !
स्वार्थी और सीमित हैं जो ,
पश्चात, आत्मग्लानि से मरते हैं !

तो उठो हे नारी!
गठन करो स्वतंत्र युग का,
बन प्रत्येक आत्माधिकारी,
धरो रूप दशभुजा दुर्गा!

धरो कर में स्वतंत्र इच्छा,
करो मन में स्वनिर्भर चिंता,
परिवर्तन प्रदर्शित करो जग में,
अभया रक्षित बनो निर्भया!

नयन
11:34 am, Sun, 13th July’14
Malaysian Township,
Hyderabad, India

© Bhaskar Jyoti Ghosh [Google+, FB]