दोनों बाहें ऊंची करके
बोलो, आगे आना है।
चारों दिशाएं अब जाग चुकीं हैं,
अब और नहीं तुझे सोना है!
बहुत छिप लिए अंधेरे में,
डर का वज़न अब न ढोना है।
बहुत हार चुके जीवन में,
अब आगे नहीं और रोना है!
बहुत मरते ही रहे तेरे सपनों ने,
न और सहो गुमनामी का चोगा।
बहुत मर चुके हो तुम जग में,
लेकिन अब आगे जीना होगा!
जीवन के पग चिन्हों पे
जो दिया जलाई जाएगी,
वो सुनो तुम्हारे हिम्मत की
मिट्टी से बनाई जाएगी!
घेरों और अंधेरों ने खूब
किया तुम पर अपना राज है,
अब सीमाओं को मिटाने की
घड़ी का तेरा आग़ाज़ है।
आंधी तूफानों में तू डटकर,
हजारों सितारें करे चित्कार,
हिम्मत का ही तू हक कर,
बस जीवन का हो आज हुंकार!
हमराही के हथेली पे तूने
मोहब्बत का नाम लिखवाया है।
अब डर नहीं है तेरे सीने में,
तूने खुद को सोने का सेहरा पहनाया है।
सुलगती आग की चिंगारी हो,
तूने अब अपनी किस्मत पहचाना है,
मिटती लौ तू आज जाग चुकी है,
अब आशा का आशियाना आजमाना है।
सो, उठ बैठ तू कर मंथन,
धरती पे खुद को पहचान,
तुझे लिखने वालों को भी तू
मौजूद रह, कर दे हैरान!
- भास्कर
सोमवार, 16 जून 2025
सुबह 9:30 बजे, पटना
(फोटो chatgpt द्वारा बनाई गई है)