क्या समंदर छोड़ मैं चला
करने चुल्लू भर पानी की खोज?
सोचा था क्यों मुरख मन ने
कि संभलेगा नहीं यह बोझ?
ओस की बूंद व तितली की
स्थिरता को ही क्या चाहा था मैंने?
पर अकल बेच आस्था गँवाकर
क्यों किया था धैर्य से किनारा?
घट घट भटकता मैं चला
लेकरके क्यों फूटा लोटा?
गागर में सागर सिमटने को
क्या बह निकलेगा सारा जल?
कुछ पाने की जद्दोजहद ने क्या
काफ़ी कुछ न होने था दिया?
तो चीखने चिल्लाने व रोने के बजाय
क्यों बेजुबान अब बैठा है आंखें मूंद?
मुस्कान ने क्यों खोया मधुर को?
धैर्य को न मिला क्या साहस का सहारा?
प्यासी अधरें क्या थीं इतनी अंधी?
न दिखा, बारिश से लहरों का उफान?
– नयन
25 जुलाई 2024
दोपहर 11:43, पटना
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