दर्द की ज़ुबान को सुनने को,
पर ख़ुद को मैं पाक रखूं,
इसी चाहत को लेकर चला हूं।
करने को वे करेंगे बहुत कुछ,
कहने को वे कहेंगे बहुत कुछ,
पर बेदाग रहूं भीतर से मैं,
इसी कोशिश के साथ खड़ा हूं।
होश में रहूं, सचेत रहूं,
पल पल धड़कनों को और
सांसों को जानू, ताकि
मुख से निकले कुछ न बासी।
सीमित सोच व बीमार बुद्धि
से कैसे हो अब समाज की शुद्धि?
मन के हैवान को बदल, ताकि
भूल से भी न होएं उसकी दासी।
- नयन,
रात 11:22 बजे, 20 जुलाई 2023
पटना