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Sunday, June 9, 2019

सागर में ढूंढ़ रहे हम

सागर में ढूंढ़ रहे हम
अफसानों के सीपों को,
गोता खाने से कतरा रहे फिर भी
भीग न जाए कहीं तन जो।

हम में तुम में बात अलग है,
इतनी सी से लड़ लें क्या हम?
अंदर बहता जो धुन इकतारा,
अनसुने दिल को कभी सून लो न!

भगदड़ वाला जी है हमारा,
सहे न एक पल का भी थमना।
हर की हरकत, सभी की बातें,
उफान लेे आता है मन में।

सुलगती चिंगारी और धधकती आग में
फासला नहीं ज्यादा कुछ होता,
(जली) राख को ढाखने की (दिखावटी) कोशिश में
भूल जाते हैं - चिंगारी न आने देना ही था आसान।

जीते जी मर मर कर हम
ढूंढते हैं सपनों में जीवन,
हर पल नया, हर सांस नई, पर
न देखने की कसम खाता जन जन।

कैसे निकलें इस अंधी धुन से,
सच की शिखा को थामे कैसे,
जलाएं कैसे मन मंदिर में ज्योति ?
हर पल जो धधकता है डर दिल में।

- नयन
८ जून, २०१९, रविबार
पटना/कोयंबत्तूर

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