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Friday, June 14, 2019

sach me tap gayi hai dharti


सच में, तप गई है धरती

सुलगती हवा सीने को चीड़
उठती है ऊपर, आग सा गरम।
झुलसती चेहरे की सुखीं पलकें भी
जैसे बचा न पाती हैं आंखों को।
गिने चुने पेड़ों की मुरझाईं पत्तियां भी
हरियाली से बेआब्रू मिट्टी को
सुकून नहीं दे पाती है, आज
कहीं दिखती नहीं बारिश की आस -
सच में, तप गई है धरती

जो बोल पातें हैं हम, फिर भी
कराहती आहों की आवाज़
नहीं पहुंच पाती है हमारी
सोती अंतरात्मा तक,
बीच में ही कहीं सुख कर
रह जाती है, उन अगनित
नदियों की तरह, जो आज
रेतीली राह बन रह गईं है सिर्फ,
पानी की परछाई से भी दूर।

फिर बेबाक जीवों की कहानी
क्या बयां करें? हम अपनी ही
नहीं सुनते, उनकी क्या सुनेंगे भला?
जीवन तो जीवन है बस, हो
चाहे इंसान, पशु, पक्षी या पेड़,
पर हमारी सिर्फ और पाने की
होड़ ने आज उजाड़ दिया है चमन,
हर एक जान, एक एक बूंद जीवन
के लिए हो गई है मोहताज।

आज अलकतरे की सड़कों से,
गिट्टियों से, सीमेंट-इमारतों से,
ज्वालामुखी के अंगारें निकलते हैं,
जहां भी जीवन धधक रहा, वह
छांव की खोज में तड़पता है।
हरियाली की चिता पर आज
हमने भट्टियां बना कर रक्खा है!
क्या ठंडे पानी, हवा व छांव के
अभाव का अब भी आभास न होता है?

नयन
१४ जून, २०१९, शुक्रवार
पटना हावड़ा जन शताब्दी
(भीषण गर्मी में)

(चित्र यहां से अभार सहित गृहित है - https://www.google.com/amp/s/www.nytimes.com/2019/06/13/world/asia/india-heat-wave-deaths.amp.html)

Sunday, June 9, 2019

सागर में ढूंढ़ रहे हम

सागर में ढूंढ़ रहे हम
अफसानों के सीपों को,
गोता खाने से कतरा रहे फिर भी
भीग न जाए कहीं तन जो।

हम में तुम में बात अलग है,
इतनी सी से लड़ लें क्या हम?
अंदर बहता जो धुन इकतारा,
अनसुने दिल को कभी सून लो न!

भगदड़ वाला जी है हमारा,
सहे न एक पल का भी थमना।
हर की हरकत, सभी की बातें,
उफान लेे आता है मन में।

सुलगती चिंगारी और धधकती आग में
फासला नहीं ज्यादा कुछ होता,
(जली) राख को ढाखने की (दिखावटी) कोशिश में
भूल जाते हैं - चिंगारी न आने देना ही था आसान।

जीते जी मर मर कर हम
ढूंढते हैं सपनों में जीवन,
हर पल नया, हर सांस नई, पर
न देखने की कसम खाता जन जन।

कैसे निकलें इस अंधी धुन से,
सच की शिखा को थामे कैसे,
जलाएं कैसे मन मंदिर में ज्योति ?
हर पल जो धधकता है डर दिल में।

- नयन
८ जून, २०१९, रविबार
पटना/कोयंबत्तूर

পিছু না নিয়ে আর পারলাম না

জানি যে কষ্ট হবে, না পেরে ওঠার
শঙ্কাও ছিল মনে, কিন্তু কী করি -
বাঁসিওয়ালা এমন ধুন বাজালে যে,
পিছু না নিয়ে যে আর পারলাম না !

তোমার চোখের নিরব নৈঃশব্দ,
তোমার হৃদয়ের উচ্ছ্বাসের সাথে
মিশে এক হয়ে আছে, এখানকার
তোমার প্রতিটি পায়ের ছাপে!

বিভীষিকায় বাঁধা মানুষ প্রাণে
লাগে যেই তোমার কৃপার ছোঁয়া,
হালকা হাওয়ায় যায় খুলে জট,
মিলিয়ে মনের ভারী ধোঁয়া।

তাই নিই পিছু তোমারই আজ,
হাসি ফোটাতে মুখে মুখে,
ডাকে - তুমি শুরু করেছ যে কাজ,
পারিনা পারিনা নিজেকে থামাতে।

তাই তোমাকেই দেখি যেন
প্রতিটি শ্বাসে, প্রতি পলে,
যে পথ দেখালে তুমি হাত ধরে,
ভরসা তুমিই, তুমিই সম্বল।

তাই মানুষের মাঝে হই যেন তুমিই,
হারিয়ে নিজেকে তোমার মাঝে,
জাদুকর তাই তোমার তানে আজ
মাতিয়ে তোলো অন্তহীন সাজে!

- নয়ন
৯ জুন, ২০১৯, রবিবার
পাটনা/কোয়েম্বাটোর