ऐ खुदा
यह मुझको बता,
क्या किया था मैंने
कि यह वरदान
तूने मुझको दिया,
कि यहां आ गए हम,
कि यहां आ गए हम!
अब जियें या मरें,
है बस यही अरमान,
कि जियूं तो उसके लिए,
मरूं तो उसके लिए,
ये जान न्योछावर हो
बस अब उसी के लिए!
जिसने सांस लेना सिखलाया,
हर एक सांस अब
बस उसी के लिए!
संसार की दौलत से परे
जिसने रूह का ख़ज़ाना खुलवाया,
बेबसी और तानों से निकाल कर
जिसने आज़ादी का सपना दिखलाया,
बंद आंखों में भी जिसने
ख़ुदा का नूर छलकाया,
अब और ये न खता हो,
कि उसे छोड़ जाऊं मैं!
कि उसे छोड़ कभी न जाऊं मैं!
जिसने खुद के पहचान से परे
खुद की कीमत समझाया,
जिसने अपनापन के रिश्तों से बढ़कर
खुद में जो ख़ुदा है,
उससे नाता जुड़वाया,
जिसने अपनी ही गहराइयों में छिपे
खुशी और रौशनी का रास्ता दिखलाया,
अब यहां यह धड़कता जीवन भी
बस उसी का नज़राना!
मेरे मालिक, मेरे मौला,
तूने इसको भी खींच लिया,
इस बेवकूफ अभागे को
भी तूने तिलिस्म दिखा दिया!
अब बस बाकी एक और चाहत है,
कि मुझे तू अपने में समा लेना,
फिर वापस जाने न देना,
बस अपने में समा लेना!
-- नयन
बुधवार, २१ अक्टूबर २०२०
कोयंबतूर